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मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना किया | शाही शायरी
malal-e-dil se ilaj-e-gham-e-zamana kiya

ग़ज़ल

मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना किया

अहमद मुश्ताक़

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मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना किया
ज़िया-ए-मेहर से रौशन चराग़-ए-ख़ाना किया

सहर हुई तो वो आए लटों को छटकाते
ज़रा ख़याल-ए-परेशानी-ए-सबा न किया

हज़ार शुक्र कि हम मस्लहत-शनास न थे
कि हम ने जिस से किया इश्क़ वालेहाना किया

वो जिस के लुत्फ़ में बेगानगी भी शामिल थी
उसी ने आज गुज़र दिल से महरमाना किया

वो बज़्म-ए-हर्फ़ हो या महफ़िल-ए-समा-ए-ख़याल
जहाँ भी वज्द किया हम ने बे-तराना किया