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मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए | शाही शायरी
main zinda hun ye mushtahar kijiye

ग़ज़ल

मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए

साहिर लुधियानवी

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मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए
मिरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए

ज़मीं सख़्त है आसमाँ दूर है
बसर हो सके तो बसर कीजिए

सितम के बहुत से हैं रद्द-ए-अमल
ज़रूरी नहीं चश्म तर कीजिए

वही ज़ुल्म बार-ए-दिगर है तो फिर
वही जुर्म बार-ए-दिगर कीजिए

क़फ़स तोड़ना बाद की बात है
अभी ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर कीजिए