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मैं वो आँसू कि जो माला में पिरोया जाए | शाही शायरी
main wo aansu ki jo mala mein piroya jae

ग़ज़ल

मैं वो आँसू कि जो माला में पिरोया जाए

सलीम शाहिद

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मैं वो आँसू कि जो माला में पिरोया जाए
तू वो मोती कि जिसे देख के रोया जाए

बहर को बहर न समझे तो ख़तावार बने
अब तक़ाज़ा है सफ़ीने को डुबोया जाए

ये बजा है कि अमानत में ख़यानत न करो
एहतियातन ही सही ज़ख़्म को धोया जाए

थक गए नज़रों के पाँव भी सियह जंगल में
अब ज़रा देर ठहर जाओ कि सोया जाए

आज की रात ब-हर-हाल न सोना 'शाहिद'
हर घड़ी आँख में इक ख़ार चुभोया जाए