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मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला | शाही शायरी
main wahi dasht hamesha ka tarasne wala

ग़ज़ल

मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला

साक़ी फ़ारुक़ी

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मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला
तू मगर कौन सा बादल है बरसने वाला

संग बन जाने के आदाब सिखाए मैं ने
दिल अजब ग़ुंचा-ए-नौ-रस था बिकसने वाला

हुस्न वो टूटता नश्शा कि मोहब्बत माँगे
ख़ून रोता है मिरे हाल प हँसने वाला

रंज ये है कि हुनर-मंद बहुत हैं हम भी
वर्ना वो शोला-ए-इसयाँ था झुलसने वाला

वो ख़ुदा है तो मिरी रूह में इक़रार करे
क्यूँ परेशान करे दूर का बसने वाला