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मैं उस की बात की तरदीद करने वाला था | शाही शायरी
main uski baat ki tardid karne wala tha

ग़ज़ल

मैं उस की बात की तरदीद करने वाला था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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मैं उस की बात की तरदीद करने वाला था
इक और हादसा मुझ पर गुज़रने वाला था

कहीं से आ गया इक अब्र दरमियाँ वर्ना
मिरे बदन में ये सूरज उतरने वाला था

मुझे सँभाल लिया तेरी एक आहट ने
सुकूत-ए-शब की तरह मैं बिखरने वाला था

अजीब लम्हा-ए-कमज़ोर से मैं गुज़रा हूँ
तमाम सिलसिला पल में बिखरने वाला था

मैं लड़खड़ा सा गया साया-ए-शजर में ज़रूर
मैं रास्ते में मगर कब ठहरने वाला था

अब आसमाँ भी बड़ा शांत है ज़मीं भी सुखी
गुज़र गया है जो हम पर गुज़रने वाला था

लगा जो पीठ में आ कर वो तीर था किस का
मैं दुश्मनों की सफ़ों में न मरने वाला था