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मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद | शाही शायरी
main ujDa shahr tha tapta tha dasht ke manind

ग़ज़ल

मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद

फ़ुज़ैल जाफ़री

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मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद
तिरा वजूद कि सैराब कर गया मुझ को

हर आदमी में थे दो चार आदमी पिन्हाँ
किसी को ढूँडने निकला कोई मिला मुझ को

है मेरे दर्द को दरकार गोश्त की ख़ुश्बू
बहुत नहीं तिरी यादों का सिलसिला मुझ को

तिरी बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं
दिखा कभी मेरे ख़्वाबों का आईना मुझ को