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मैं उदास-रात का चाँद हूँ घने बादलों में घिरा हुआ | शाही शायरी
main udas-raat ka chand hun ghane baadalon mein ghira hua

ग़ज़ल

मैं उदास-रात का चाँद हूँ घने बादलों में घिरा हुआ

काशिफ़ रफ़ीक़

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मैं उदास-रात का चाँद हूँ घने बादलों में घिरा हुआ
मिरी ताब की हो ख़बर किसे मैं रिदा-ए-ग़म में छुपा हुआ

नहीं फूल मैं कि मिरी तरफ़ किसी ख़ुश-नज़र की निगाह हो
मैं तो एक ज़र्द सा पात हूँ कहीं रास्ते में पड़ा हुआ

मुझे डर था जिस का वही हुआ मिरी आँख खुलते ही झड़ गया
तिरी पलकों पर मिरे वस्ल का था जो एक ख़्वाब सजा हुआ

मिरी धड़कनें थीं बढ़ी हुई मिरे होंट जैसे सिले हुए
मैं बयान हाल न कर सका तिरे सामने मुझे क्या हुआ

ये अदावतों की सुबुक हवा उसे सह सकूँ कहाँ हौसला
मैं वो पेड़ हूँ कि मोहब्बतों की फ़ज़ा में फूला-फला हुआ

ये दयार-ए-दिल ये खंडर सही मगर इस की रौनक़ें कम नहीं
यहाँ रंग रंग के ज़ख़्मों का शब-ओ-रोज़ मेला लगा हुआ