EN اردو
मैं तुम को पूजता रहा जब तक ख़ुदी में था | शाही शायरी
main tumko pujta raha jab tak KHudi mein tha

ग़ज़ल

मैं तुम को पूजता रहा जब तक ख़ुदी में था

मीर यासीन अली ख़ाँ

;

मैं तुम को पूजता रहा जब तक ख़ुदी में था
अपना मिला सुराग़ मुझे बे-ख़ुदी के बा'द

क्या रस्म-ए-एहतियात भी दुनिया से उठ गई
ये सोचना पड़ा मुझे तेरी हँसी के बा'द

घबरा के मर न जाइए मरने से फ़ाएदा
इक और ज़िंदगी भी है इस ज़िंदगी के बा'द

आए हैं इस जहाँ में तो जाना ज़रूर है
कोई किसी से पहले तो कोई किसी के बा'द

ऐ अब्र-ए-नौ-बहार ठहर पी रहा हूँ मैं
जाना बरस के ख़ूब मिरी मय-कशी के बा'द

मरते थे जिस पे हम वो फ़क़त हुस्न ही न था
ये राज़ हम पे आज खुला आशिक़ी के बा'द

ऐ मौसम-ए-बहार ठहर आ रहा हूँ मैं
दामान-ए-चाक-चाक की बख़िया-गरी के बा'द