EN اردو
मैं तो सौ बार तिरे मिलने को आया तन्हा | शाही शायरी
main to sau bar tere milne ko aaya tanha

ग़ज़ल

मैं तो सौ बार तिरे मिलने को आया तन्हा

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

;

मैं तो सौ बार तिरे मिलने को आया तन्हा
लेकिन अफ़सोस कभी तुझ को न पाया तन्हा

शिर्क से ख़ाली किसी का न नज़र आया दिल
वो बड़े ज़र्फ़ हैं जिन में तू समाया तन्हा

किस को दावा नहीं उल्फ़त का तिरी आलम में
आशिक़ों में तिरे मैं ही न कहाया तन्हा

बंद-ए-काकुल में तिरे जी भी हमारा है असीर
दाम में ज़ुल्फ़ के दिल ही न फँसाया तन्हा

कल 'जहाँदार' हम और यार थे टुक मिल बैठे
बख़्त-ए-ना-साज़ ने फिर आज बिठाया तन्हा