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मैं तिरी दस्तरस से बहुत दूर था | शाही शायरी
main teri dastaras se bahut dur tha

ग़ज़ल

मैं तिरी दस्तरस से बहुत दूर था

अमीन राहत चुग़ताई

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मैं तिरी दस्तरस से बहुत दूर था
फिर भी नज़दीक आने पे मजबूर था

आज मैं ही सज़ा-वार-ए-जौर-ओ-सितम
कल तिरी माँग का मैं ही सिंदूर था

कौन आता है यूँ ज़ेर-ए-दाम इन दिनों
रात तारीक थी आशियाँ दूर था

कुछ ख़ुलूस-ए-वफ़ा पर भी नादिम था मैं
और कुछ दिल के ज़ख़्मों से भी चूर था

आइना देख कर यूँ नदामत हुई
मैं कि 'राहत' हूँ अब पहले मंसूर था