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मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए | शाही शायरी
main tere zulm dikhata hun apna matam karne ke liye

ग़ज़ल

मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए

साक़ी फ़ारुक़ी

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मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए
मिरी आँखों में आँसू आए तिरी आँखें नम करने के लिए

मिट्टी से हुआ मंसूब मगर आतिश-ख़ाना सा जलता हूँ
कई सूरज मुझ में डूब गए मिरा साया कम करने के लिए

वो याद के साहिल पर सारे मोती बिखराए बैठी थी
इक लहर लहू में उट्ठी थी मुझे ताज़ा-दम करने के लिए

आज अपने ज़हर से काट दिया सब ज़ंग पुराने लफ़्ज़ों का
आइंदा के अंदेशों की तारीख़ रक़म करने के लिए

मुमकिन है कि अब भी होंटों पर कोई भूला बिसरा शोला हो
मैं जलते जलते राख हुआ लहजा मद्धम करने के लिए