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मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ | शाही शायरी
main sochta to hun lekin ye baat kis se kahun

ग़ज़ल

मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ

अशफ़ाक़ अंजुम

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मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ
वो आइने में जो उतरे तो मैं सँवर जाऊँ

ख़ुद अपने आप से वहशत सी हो रही है मुझे
बिछड़ के तुझ से मैं इक मुस्तक़िल अज़ाब में हूँ

हर एक लम्हा भँवर है हर एक पल तूफ़ाँ
कहाँ तक और मैं साहिल की जुस्तुजू में बढ़ूँ

मिरे वजूद ने क्या क्या लिबास बदले हैं
कहीं चराग़ कहीं रास्ते का पत्थर हूँ

हवा के दोश पे हूँ मिस्ल-ए-बर्ग-ए-आवारा
अब और क्या कहूँ 'अंजुम' में अपना हाल-ए-ज़बूँ