EN اردو
मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे | शाही शायरी
main sach to kah dun par usko kahin bura na lage

ग़ज़ल

मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे

असरा रिज़वी

;

मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे
मिरे ख़याल की यारब उसे हवा न लगे

अजीब तर्ज़ से अब के निभाया उल्फ़त को
वफ़ा जो की है तो इस तरह कि वफ़ा न लगे

दरून-ए-ज़ात बसा है जहान यादों का
वो दूर रह के भी मुझ को कभी जुदा न लगे

कभी तो कहता था हर लम्हा तेरे साथ हूँ मैं
अब ऐसे बछड़ा के उस का कहीं पता न लगे

तबीब तुम को भुलाने का कर रहा है इलाज
मरज़ हुआ है पुराना कोई दवा न लगे

तुम्हारे वास्ते जब जब बढ़ाया दस्त-ए-तलब
अजीब बात है इस दम दुआ दुआ न लगे

उठे नज़र से न उस की फुसून-ए-पर्दा-ए-हुस्न
ख़ता भी तुझ से अगर हो उसे ख़ता न लगे

ये तेरा तर्ज़-ए-बयाँ मुश्रिकों सा है 'असरा'
वो दिन न आए के तुझ को ख़ुदा ख़ुदा न लगे