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मैं पुर्सिश-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त की दाद देता हूँ | शाही शायरी
main pursish-e-gham-e-furqat ki dad deta hun

ग़ज़ल

मैं पुर्सिश-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त की दाद देता हूँ

अरशद सिद्दीक़ी

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मैं पुर्सिश-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त की दाद देता हूँ
तिरी लतीफ़ नदामत की दाद देता हूँ

मलाल-ए-तर्क-ए-मरासिम तो कुछ नहीं लेकिन
इस एहतियात-ए-मोहब्बत की दाद देता हूँ

कहाँ बहिश्त कहाँ ज़िंदगी मगर नासेह
मैं तेरे हुस्न-ए-अक़ीदत की दाद देता हूँ

तबाहियाँ भी मोहब्बत को रास आ न सकीं
सितम-ज़रीफ़ी-ए-फ़ितरत की दाद देता हूँ

ओ मुस्कुरा के निगाहों को फेरने वाले
मैं तेरे अज़्म-ए-बग़ावत की दाद देता हूँ

मिरे ख़ुलूस को लफ़्ज़ों से नापने वालो
तुम्हारे हुस्न-ए-बसीरत की दाद देता हूँ

किसी से सुनता हूँ जब दुश्मनी का ज़िक्र 'अरशद'
तो दोस्तों की इनायत की दाद देता हूँ