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मैं पस-ए-तर्क-ए-मोहब्बत किसी मुश्किल में नहीं | शाही शायरी
main pas-e-tark-e-mohabbat kisi mushkil mein nahin

ग़ज़ल

मैं पस-ए-तर्क-ए-मोहब्बत किसी मुश्किल में नहीं

नूह नारवी

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मैं पस-ए-तर्क-ए-मोहब्बत किसी मुश्किल में नहीं
दिल भी पहलू में नहीं दर्द भी अब दिल में नहीं

बुल-हवस चल दिए सब जान बचा कर अपनी
सिर्फ़ क़ातिल है कोई कूचा-ए-क़ातिल में नहीं

वक़्त मरने का जो आएगा तो मर जाऊँगा
मेरे नज़दीक ये मुश्किल कोई मुश्किल में नहीं

डूब कर पार उतरते हैं उतरने वाले
क़'अर-ए-दरिया का मज़ा दामन-ए-साहिल में नहीं

बस वही क़हर-ओ-ग़ज़ब बस वही आज़ार-ए-सितम
लुत्फ़ की बात कोई आप की महफ़िल में नहीं

भेज कर ख़त उन्हें बुलवाएँ मुहिब्बान-ए-सुख़न
कुछ भी महफ़िल में नहीं 'नूह' जो महफ़िल में नहीं