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मैं ने यूँ देखा उसे जैसे कभी देखा न था | शाही शायरी
maine yun dekha use jaise kabhi dekha na tha

ग़ज़ल

मैं ने यूँ देखा उसे जैसे कभी देखा न था

अख़्तर होशियारपुरी

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मैं ने यूँ देखा उसे जैसे कभी देखा न था
और जब देखा तो आँखों पर यक़ीं आता न था

बाम-ओ-दर से सख़्त बारिश में भी उट्ठेगा धुआँ
यूँ भी होता है मोहब्बत में कभी सोचा न था

आँधियों को रौज़न-ए-ज़िंदाँ से हम देखा किए
दूर तक फैला हुआ सहरा था नक़्श-ए-पा न था

लोग लाए हैं कहाँ से शब को मरमर के चराग़
उन चटानों में तो दिन को रास्ता पैदा न था

शहर की हंगामा-आराई में खो कर रह गया
मैं कि अपने घर में भी मुझ को सुकूँ मिलता न था

बर्फ़ अपने-आप घुल जाती है सूरज हो न हो
शाम से पहले ये जाना था मगर समझा न था

उन दिनों भी शहर में सैलाब आते थे बहुत
वादियों में जब कहीं बादल अभी बरसा न था

रात की तन्हाइयों में जिस से चौंक उठ्ठे थे हम
अपनी ही आवाज़ थी शो'ला कोई चमका न था

वो भी सच कहते हैं 'अख़्तर' लोग बेगाने हुए
हम भी सच्चे हैं कि दुनिया का चलन ऐसा न था