मैं ने हाथों में कुछ नहीं रक्खा
ऐसी बातों में कुछ नहीं रक्खा
इक सिवा तेरे दर्द के मैं ने
अपनी आँखों में कुछ नहीं रक्खा
मेरी रातों का पूछते क्या हो
मेरी रातों में कुछ नहीं रक्खा
इक तसल्ली सी है 'रविश' वर्ना
रिश्ते-नातों में कुछ नहीं रक्खा
ग़ज़ल
मैं ने हाथों में कुछ नहीं रक्खा
शमीम रविश