मैं ने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है
और तू है कि मिरी जान को आया हुआ है
बस इसी बोझ से दोहरी हुई जाती है कमर
ज़िंदगी का जो ये एहसान उठाया हुआ है
क्या हुआ गर नहीं बादल ये बरसने वाला
ये भी कुछ कम तो नहीं है जो ये आया हुआ है
राह चलती हुई इस राहगुज़र पर 'अजमल'
हम समझते हैं क़दम हम ने जमाया हुआ है
हम ये समझे थे कि हम भूल गए हैं उस को
आज बे-तरह हमें याद जो आया हुआ है
वो किसी रोज़ हवाओं की तरह आएगा
राह में जिस की दिया हम ने जलाया हुआ है
कौन बतलाए उसे अपना यक़ीं है कि नहीं
वो जिसे हम ने ख़ुदा अपना बनाया हुआ है
यूँही दीवाना बना फिरता है वर्ना 'अजमल'
दिल में बैठा हुआ है ज़ेहन पे छाया हुआ है
ग़ज़ल
मैं ने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है
अजमल सिराज