मैं नक़्श-हा-ए-ख़ून-ए-वफ़ा छोड़ जाऊँगा
या'नी कि राज़-ए-रंग-ए-हिना छोड़ जाऊँगा
तू आने वाले कल के लिए क्यूँ है फ़िक्रमंद
तेरे लिए मैं अपनी दुआ छोड़ जाऊँगा
तेरे ख़िलाफ़ कोई न खोले कभी ज़बाँ
तेरी निगाह में वो नशा छोड़ जाऊँगा
आ जाइएगा शौक़ से बे बेचैन जब हो दिल
दरवाज़ा अपने घर का खुला छोड़ जाऊँगा
रुख़सार-ओ-लब की तेरी न कम होंगी रौनक़ें
मैं हर ग़ज़ल में ज़िक्र तिरा छोड़ जाऊँगा
आईने दे सकेंगे न तुझ को कभी फ़रेब
तेरी जबीं पे तेरा पता छोड़ जाऊँगा
इक ख़ास चीज़ छोड़ूँगा सब के लिए 'अलीम'
पहले से क्यूँ बताऊँ कि क्या छोड़ जाऊँगा
ग़ज़ल
मैं नक़्श-हा-ए-ख़ून-ए-वफ़ा छोड़ जाऊँगा
अलीम उस्मानी