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मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा | शाही शायरी
main na jaana tha ki tu yun be-wafa ho jaega

ग़ज़ल

मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा

सिराज औरंगाबादी

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मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा
आश्ना हो इस क़दर ना-आश्ना हो जाएगा

ख़ूब लगती है अगर बद-नामी-ए-आशिक़ तुझे
आह करता हूँ कि शोहरा जा-ब-जा हो जाएगा

गर तुम्हारी दिल ख़ुशी है ज़ब्ह करने में मिरे
ख़ूब जी जावे तो जावे और क्या हो जाएगा

मैं सुना हों तुझ लबों का नाम ही हाजत-रवा
यक तबस्सुम कर कि मेरा मुद्दआ हो जाएगा

क्या अजब गर मैं हुआ दीवाना-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ
गर फ़रिश्ता होवे तो उन का मुब्तला हो जाएगा

मैं तुम्हारे आस्ताने सीं जुदा होने का नहीं
सर अगर शमशीर सीं कट कर जुदा हो जाएगा

ज्यूँ 'सिराज' उस शम्अ-रू पर दिल कूँ है मिलने का शौक़
फ़र्ज़-ए-ऐन-ए-आशिक़ी सीं अब अदा हो जाएगा