मैं मुब्तला-ए-इश्क़ हूँ मुझ को पता न था
जब तक किसी ने हाल ये मेरा किया न था
पाया है जब से तुझ को है तकमील का सुरूर
मैं थी अधूरी तू मुझे जब तक मिला न था
अल्लाह तेरे इश्क़ में हूँ हाल से बेहाल
तब तक बड़े मज़े में थी जब दिल लगा न था

ग़ज़ल
मैं मुब्तला-ए-इश्क़ हूँ मुझ को पता न था
रज़िया हलीम जंग