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मैं ख़ुद गया न उस की अदा ले गई मुझे | शाही शायरी
main KHud gaya na uski ada le gai mujhe

ग़ज़ल

मैं ख़ुद गया न उस की अदा ले गई मुझे

नो बहार साबिर

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मैं ख़ुद गया न उस की अदा ले गई मुझे
मक़्तल में रस्म-ए-पास-ए-वफ़ा ले गई मुझे

अंदर से खोखला जो था बैलून की तरह
चाहा जिधर हवा ने उड़ा ले गई मुझे

इक हर्फ़ था जो तुम ने सुना अन-सुना किया
अब ढूँडते फिरो कि सदा ले गई मुझे

साहिल से मेरा पाँव फिसलने की देर थी
इक मौज-ए-बे-पनाह बहा ले गई मुझे

बैठा था छुप के ओस की ठंडी फुवार में
आई कड़कती धूप उठा ले गई मुझे

जाता कहाँ कि आगे कोई रास्ता न था
अंधी गुफा में मेरी अना ले गई मुझे

'साबिर' मैं रेज़ा रेज़ा ख़ला में बिखर गया
इतनी बुलंदियों पे हवा ले गई मुझे