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मैं खो गया हूँ कहाँ आशियाँ बनाते हुए | शाही शायरी
main kho gaya hun kahan aashiyan banate hue

ग़ज़ल

मैं खो गया हूँ कहाँ आशियाँ बनाते हुए

अहमद लतीफ़

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मैं खो गया हूँ कहाँ आशियाँ बनाते हुए
ज़मीन भूल गया आसमाँ बनाते हुए

सितारा-वार चमकता हर एक ज़र्रा मिरा
बिखर न जाए कहीं कहकशाँ बनाते हुए

तुम्हारे नाम पे मैं जल-बुझा तो इल्म हुआ
कि सूद बनता है कैसे ज़ियाँ बनाते हुए

महाज़ पर ही रहा हूँ लहू के बुझने तक
क़लम हुए मिरे बाज़ू कमाँ बनाते हुए

क़दम कुछ ऐसा उठा आख़िरी क़दम कि 'लतीफ़'
मैं दो जहाँ से गया इक जहाँ बनाते हुए