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मैं ख़िज़ाँ को बहार करता हूँ | शाही शायरी
main KHizan ko bahaar karta hun

ग़ज़ल

मैं ख़िज़ाँ को बहार करता हूँ

सुलतान फ़ारूक़ी

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मैं ख़िज़ाँ को बहार करता हूँ
जब्र को इख़्तियार करता हूँ

मौत की तरह काश बर-हक़ हो
जिस का मैं इंतिज़ार करता हूँ

अहद-ओ-पैमान पर नहीं लेकिन
आप पर ए'तिबार करता हूँ

जो करे याद दुश्मनी में भी
ऐसे दुश्मन को प्यार करता हूँ

अपने ज़र्रात को ख़यालों के
गौहर-ए-आब-दार करता हूँ

दिल-नशीं मुख़्तसर सलीस आसाँ
शाएरी बा-वक़ार करता हूँ