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मैं ख़ाक छानता हूँ आफ़्ताब देखता हूँ | शाही शायरी
main KHak chhanta hun aaftab dekhta hun

ग़ज़ल

मैं ख़ाक छानता हूँ आफ़्ताब देखता हूँ

अरशद महमूद नाशाद

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मैं ख़ाक छानता हूँ आफ़्ताब देखता हूँ
हरीम-ए-दश्त में ख़ुशबू के ख़्वाब देखता हूँ

हिसार-ए-ग़ैर में रहता है ये मकान-ए-वजूद
मैं ख़ल्वतों में भी अक्सर अज़ाब देखता हूँ

ये क्या कि अहद-ए-बहाराँ में हर शजर बे-बर्ग
ये क्या कि फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में गुलाब देखता हूँ

मिरे ख़याल में खिलने लगे हैं ज़ख़्म-ए-फ़िराक़
तुम्हारे लुत्फ़-ओ-करम का हिसाब देखता हूँ

वरक़ वरक़ पे तिरे ख़ाल-ओ-ख़द हैं अक्स-फ़गन
हुजूम-ए-यास में दिल की किताब देखता हूँ

ये बे-सबब तो नहीं गर्द-ए-रहगुज़र 'नाशाद'
तलाश-ए-आब-ए-रवाँ में सराब देखता हूँ