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मैं कह रहा हूँ सर-ए-आम बरमला बाबा | शाही शायरी
main kah raha hun sar-e-am barmala baba

ग़ज़ल

मैं कह रहा हूँ सर-ए-आम बरमला बाबा

अशरफ़ अली अशरफ़

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मैं कह रहा हूँ सर-ए-आम बरमला बाबा
गुमान है भरे मेले में खो गया बाबा

कड़ी है धूप तमाज़त से पाँव जलते हैं
जो साएबान सरों पर था क्या हुआ बाबा

ज़रा सी बात पे आँखें बरसने लगती हैं
कहाँ से ढूँड के लाऊँगा हौसला बाबा

तुम्हारे बा'द तो लम्हे नहीं गुज़रते हैं
अभी तो उम्र का बाक़ी है मरहला बाबा

बस एक उम्र बच्ची है तुम्हारी याद लिए
अब अपने पास बचा भी है और क्या बाबा

रुकी जो साँस तुम्हारी बदल गई दुनिया
कहाँ वो रब्त किसी से जो पहले था बाबा

मैं तीन पहर से बैठा हुआ हूँ क़ब्र के पास
अब अपने कर्ब समेटो कि मैं चला बाबा

अगर सताया ज़माने ने ज़हर खा लूँगा
तुम्हारा बेटा है 'अशरफ़' भी सर-फिरा बाबा