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मैं जो अपने हाल से कट गया तो कई ज़मानों में बट गया | शाही शायरी
main jo apne haal se kaT gaya to kai zamanon mein baT gaya

ग़ज़ल

मैं जो अपने हाल से कट गया तो कई ज़मानों में बट गया

हनीफ़ असअदी

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मैं जो अपने हाल से कट गया तो कई ज़मानों में बट गया
कभी काएनात भी कम पड़ी कभी जिस्म-ओ-जाँ में सिमट गया

यही हाल है कई साल से न क़रार-ए-दिल न सुकून-ए-जाँ
कभी साँस ग़म की उलट गई कभी रिश्ता दर्द से कट गया

मिरी जीती-जागती फ़स्ल से ये सुलूक बाद-ए-सुमूम का
मिरी किश्त-ए-फ़िक्र उजड़ गई मिरा ज़ेहन काँटों से पट गया

न दयार-ए-दर्द में चैन है न सुकून दश्त-ए-ख़याल में
कभी लम्हा भर को धुआँ छटा तो ग़ुबार राह में अट गया

न वो आरज़ू न वो जुस्तुजू न वो रंग-ए-जामा-ए-बे-रफ़ू
भला इस वजूद का वज़्न क्या जो मदार-ए-शौक़ से हट गया

न वो कैफ़-ए-शब न वो माह-ए-शब न वो कारवान-ए-ग़ज़ाल-ए-शब
जहाँ ज़िक्र-ए-हिज्र-ओ-विसाल था वो वरक़ ही कोई उलट गया