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मैं जितनी देर तिरी याद में उदास रहा | शाही शायरी
main jitni der teri yaad mein udas raha

ग़ज़ल

मैं जितनी देर तिरी याद में उदास रहा

बशीर फ़ारूक़ी

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मैं जितनी देर तिरी याद में उदास रहा
बस उतनी देर मिरा दिल भी मेरे पास रहा

अजब सी आग थी जलता रहा बदन सारा
तमाम उम्र वो होंटों पे बन के प्यास रहा

मुझे ये ख़ौफ़ था वो कुछ सवाल कर देगा
मैं देख कर भी उसे उस से ना-शनास रहा

तमाम रात अजब इंतिशार में गुज़री
तसव्वुरात में दहशत रही हिरास रहा

गले लगा के समुंदर हसीन कश्ती को
सुकूत-ए-तीरा-फ़ज़ाई में बद-हवास रहा

'बशीर' मैं उसे किस तरहा बे-वफ़ा कह दूँ
निगाह बन के जो इस दिल के आस पास रहा