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मैं जिस ख़्वाब में रहता हूँ पहले उस ख़्वाब तक आया वो | शाही शायरी
main jis KHwab mein rahta hun pahle us KHwab tak aaya wo

ग़ज़ल

मैं जिस ख़्वाब में रहता हूँ पहले उस ख़्वाब तक आया वो

ख़ावर अहमद

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मैं जिस ख़्वाब में रहता हूँ पहले उस ख़्वाब तक आया वो
फिर उस ख़्वाब से दिल के रस्ते मेरी किताब तक आया वो

मय-ख़ाने तक जाने का फिर होश भला किस को रहता
जिस मस्ती में साथ मिरे इस शहर-ए-शराब तक आया वो

कितनी प्यास और कितनी मसाफ़त उन आँखों में लिक्खी थी
एक सराब से निकला तो इक और सराब तक आया वो

उस के ब'अद तो जो करना था आप जनाब ने करना था
उस की तो मेराज यही थी आप जनाब तक आया वो

उस की ख़ातिर चश्म ओ दिल ओ जाँ फ़र्श-ए-राह तो करना तुझे
उस जंगल में 'ख़ावर' मुझ से ख़ाना-ख़राब तक आया वो