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मैं जहाँ जाऊँ मिरे साथ चले सन्नाटा | शाही शायरी
main jahan jaun mere sath chale sannaTa

ग़ज़ल

मैं जहाँ जाऊँ मिरे साथ चले सन्नाटा

चन्द्रभान ख़याल

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मैं जहाँ जाऊँ मिरे साथ चले सन्नाटा
मेरी आँखों में लगातार जले सन्नाटा

सुब्ह आती है दबे पाँव चली जाती है
घेर लेता है मुझे शाम ढले सन्नाटा

भागती भीड़ के क़दमों से लिपट कर रोए
वर्ना हर सुस्त मुसाफ़िर को छले सन्नाटा

तुम ख़यालात के ख़ेमों में सिमट मत जाना
जब सर-ए-राह कभी हाथ मले सन्नाटा

फिर मिरे शहर में लौट आई है दहशत-गर्दी
फिर हर इक जिस्म के साए में पले सन्नाटा

अब मकानों की छतों का भी नज़ारा कर लो
गुनगुनाता है सितारों के तले सन्नाटा

आज-कल उन के ठिकानों में बड़ी हलचल है
काश मेरे भी शबिस्ताँ से टले सन्नाटा