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मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ | शाही शायरी
main jab se sach ko sach kahne laga hun

ग़ज़ल

मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ

प्रबुद्ध सौरभ

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मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ
जहाँ की आँख में चुभने लगा हूँ

उजाला बाँटने की ये सज़ा है
अन्हरिया चाँद सा घटने लगा हूँ

भरम रखना उन आँखों का कि जिन को
मैं रोशन-दान सा लगने लगा हूँ

मैं उस किरदार को अब जी सकूँगा
मैं उस किरदार पर मरने लगा हूँ