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मैं जानता हूँ कौन हूँ मैं और क्या हूँ मैं | शाही शायरी
main jaanta hun kaun hun main aur kya hun main

ग़ज़ल

मैं जानता हूँ कौन हूँ मैं और क्या हूँ मैं

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

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मैं जानता हूँ कौन हूँ मैं और क्या हूँ मैं
दुनिया समझ रही है कि इक पारसा हूँ मैं

अब मुझ में और तुझ में कोई फ़ासला नहीं
तू मेरा मुद्दआ' है तिरा मुद्दआ' हूँ मैं

वाइ'ज़ जबीन-ए-शौक़ झुके तो कहाँ झुके
नक़्श-ए-क़दम ही उन के अभी ढूँढता हूँ मैं

दिल को तजल्लियात का मरकज़ बना लिया
अब उन का नाम लेने के क़ाबिल हुआ हूँ मैं

नासेह तिरी निगाह में बादा-परस्त हूँ
मय-कश समझ रहे हैं बड़ा पारसा हूँ मैं

फ़ुर्सत मिले कशाकश-ए-दुनिया से तो कहूँ
किस वहम किस गुमान में उलझा हुआ हूँ मैं

अहल-ए-ख़िरद की अक़्ल पहुँचती नहीं जहाँ
'वसफ़ी' जुनूँ में ऐसी जगह आ गया हूँ मैं