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मैं हूँ ज़ालिम की आन-बान से ख़ुश | शाही शायरी
main hun zalim ki aan-ban se KHush

ग़ज़ल

मैं हूँ ज़ालिम की आन-बान से ख़ुश

नूह नारवी

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मैं हूँ ज़ालिम की आन-बान से ख़ुश
वर्ना है कौन आसमान से ख़ुश

ना-ख़ुशी का ख़याल था लेकिन
वो हुए मेरी दास्तान से ख़ुश

इस तरह बस में आ गया कोई
कर लिया मैं ने फूल पान से ख़ुश

इस क़दर ग़म है मेरे क़ातिल को
जिस क़दर मैं हूँ इम्तिहान से ख़ुश

ख़ाक पहुँचेगा वो सर-ए-मंज़िल
जो मुसाफ़िर हुआ तकान से ख़ुश

एक को झिड़की एक को धमकी
कौन है आप की ज़बान से ख़ुश

छोड़ कर दिल को दर्द जाए कहाँ
ये मकीं है इसी मकान से ख़ुश

पास कोई पहुँच नहीं सकता
इस लिए हैं वो पासबान से ख़ुश

जान-ओ-दिल दोनों आप ले जाएँ
मैं हूँ सौ दिल हज़ार जान से ख़ुश

साक़ी-ए-मय-फ़रोश रहता है
अपनी चलती हुई दुकान से ख़ुश

'नूह' को चैन उम्र भर न मिला
क्या हों वो अपने इम्तिहान से ख़ुश