मैं हूँ तिरी निगाह में तू है मिरी निगाह में
इश्क़ भी है पनाह में हुस्न भी है पनाह में
जिन की तलब थी मो'तबर मिल गईं उन को मंज़िलें
जिन की तलाश ख़ाम है आज भी हैं वो राह में
पास भी हैं वो दूर भी क़ुर्ब भी है फ़िराक़ भी
कितना हसीं है फ़ासला मेरे दिल ओ निगाह में
इश्क़ है वजह-ए-दो-जहाँ इश्क़ है रूह-ए-दो-जहाँ
ख़म है जबीन-ए-बंदगी इश्क़ की बारगाह में
ज़ब्त-ए-अलम के इम्तिहाँ दार-ओ-रसन के मरहले
कौन सी मुश्किलें नहीं अहल-ए-वफ़ा की राह में
ज़ोहद हो क्यूँ न बे-असर तक़्वा हो क्यूँ न राएगाँ
कैफ़ ही कैफ़ है तिरे मय-कदा-ए-निगाह में
पलकों पे जब जले चराग़ आईं 'नसीम' आँधियाँ
कितना हसीन रब्त है अश्क में और आह में
ग़ज़ल
मैं हूँ तिरी निगाह में तू है मिरी निगाह में
नसीम शाहजहाँपुरी