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मैं हूँ और सिलसिला-ए-अश्क-ए-रवाँ आज की रात | शाही शायरी
main hun aur silsila-e-ashk-e-rawan aaj ki raat

ग़ज़ल

मैं हूँ और सिलसिला-ए-अश्क-ए-रवाँ आज की रात

मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

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मैं हूँ और सिलसिला-ए-अश्क-ए-रवाँ आज की रात
ज़िंदगी है हमा-तन सोज़ ब-जाँ आज की रात

दीदा-ए-शौक़ में है रक़्स-कुनाँ आज की रात
ग़म की बुझती हुई शम्ओं' का धुआँ आज की रात

अपनी पलकों पे लरज़ते हुए तारों की क़सम
सब के होंटों पे है फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ आज की रात

हैं कहाँ आह वो हूरान-ए-तसव्वुर जिन से
दिल था ग़ैरत-दह-ए-गुलज़ार-ए-जिनाँ आज की रात

सामने कोई नहीं रूह-नवाज़-ए-दिल-ओ-जाँ
ज़िंदगानी की तमन्ना है गराँ आज की रात

चाँदनी रात के चेहरे पे है क्यूँ ग़म का ग़ुबार
धुँदली धुँदली सी है क्यूँ काहकशाँ आज की रात

वो नहीं हैं तो मुक़द्दर में हैं मेरे 'मंज़ूर'
मातम-ए-मर्ग-ए-तमन्ना-ए-जवाँ आज की रात