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मैं ग़र्क़ हो गया हूँ ख़ुद अपने वजूद में | शाही शायरी
main gharq ho gaya hun KHud apne wajud mein

ग़ज़ल

मैं ग़र्क़ हो गया हूँ ख़ुद अपने वजूद में

जहाँगीर नायाब

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मैं ग़र्क़ हो गया हूँ ख़ुद अपने वजूद में
और ख़ुद को ढूँढता हूँ ख़ुद अपने वजूद में

आदत सी पड़ गई है जो तन्क़ीस की मुझे
कीड़े निकालता हूँ ख़ुद अपने वजूद में

कुछ इस तरह से ढाए हैं हालात ने सितम
गुम हो के रह गया हूँ ख़ुद अपने वजूद में

जैसे मिरे ही जिस्म का हिस्सा हो तुम कोई
मैं तुम को ढूँढता हूँ ख़ुद अपने वजूद में

हर नक़्स देखता हूँ ख़ुद अपने वजूद का
मैं एक आइना हूँ ख़ुद अपने वजूद में

क़ाएम है मुझ में मेरे तख़य्युल की सल्तनत
बे-ताज बादशह हूँ ख़ुद अपने वजूद में

'नायाब' इंक़िलाब-ए-ज़माना की है दलील
बदलाओ देखता हूँ ख़ुद अपने वजूद में