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मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था | शाही शायरी
main ek raat mohabbat ke saeban mein tha

ग़ज़ल

मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था

साक़ी फ़ारुक़ी

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मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था
मिरा तमाम बदन रूह की कमान में था

धनक जली थी फ़ज़ा ख़ून से मुनव्वर थी
मिरे मिज़ाज का इक रंग आसमान में था

जो सोचता हूँ उसे दिल में फूल खिलते हैं
वो ख़ुश-निगाह नहीं था तो कौन ध्यान में था

ये हादसा है कि दोनों ख़िज़ाँ-सरिश्त हुए
मगर बहार का इक अहद दरमियान में था

मुझे अज़ीज़ रही दुश्मनी की तल्ख़ी भी
इस एक ज़हर से क्या ज़ाइक़ा ज़बान में था