मैं डर रहा हूँ हर इक इम्तिहान से पहले
मिरे परों को हुआ क्या उड़ान से पहले
मिरे नसीब में रस्तों की धूल लिक्खी थी
न मिल सकी मुझे मंज़िल तकान से पहले
ये कौन शख़्स था चालाक किस क़दर निकला
कि बात छेड़ गया दरमियान से पहले
मैं उस के दर्द का दरमाँ तो जानता था मगर
वो कुछ तो बोलता अपनी ज़बान से पहले
तुम उस के घर की तरफ़ चल पड़े तो हो लेकिन
कोई पड़ाव नहीं आसमान से पहले
खड़ा हूँ आज मैं 'अंजुम' यक़ीं की सरहद पर
अजीब कर्ब में गुम था गुमान से पहले
ग़ज़ल
मैं डर रहा हूँ हर इक इम्तिहान से पहले
आनन्द सरूप अंजुम