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मैं भी मुश्किल से उठा रश्क भी मुश्किल से उठा | शाही शायरी
main bhi mushkil se uTha rashk bhi mushkil se uTha

ग़ज़ल

मैं भी मुश्किल से उठा रश्क भी मुश्किल से उठा

बिस्मिल सईदी

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मैं भी मुश्किल से उठा रश्क भी मुश्किल से उठा
दिल वहीं बैठ गया जब तिरी महफ़िल से उठा

तेरी महफ़िल के अलावा कोई आलम ही नहीं
वो कहीं का न रहा जो तिरी महफ़िल से उठा

मुश्किलें मेरी मोहब्बत की इलाही तौबा
उन के कूचे से जनाज़ा भी तो मुश्किल से उठा

आप में आने की फिर कोई जिहत ही न रही
मैं तिरी बज़्म से जब तेरे मुक़ाबिल से उठा

ऐन दरिया का तलातुम तो रहा साहिल तक
हो गया क़हर वो तूफ़ान जो साहिल से उठा

डगमगाना था इधर पा-ए-तलब का बिस्मिल
शोर-ए-लब्बैक इधर जानिब-ए-मंज़िल से उठा