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मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा | शाही शायरी
main bhi aawara hun tere sat aawara hawa

ग़ज़ल

मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा

सिद्दीक़ मुजीबी

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मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा
ला तू मेरे हाथ में दे हात आवारा हवा

जंगली फूलों की ख़ुश्बू रक़्स सरशारी शबाब
नज़्र कर मुझ को भी कुछ सौग़ात आवारा हुआ

एक सरशारी है जिस्म ओ रूह पर छाई हुई
रेज़ा रेज़ा आसमाँ बरसात आवारा हवा

उस ख़राबे में भी इक जन्नत बना ली है जहाँ
एक मैं हूँ इक ख़ुदा की ज़ात आवारा हवा

याद आता है कपासी बादलों का साएबाँ
जगमगाते मंज़रों की रात आवारा हवा

बे-पनाही ज़ेहन की क़िंदील-ए-दानिश भी सियाह
रू-ब-रू हद्द-ए-नज़र ज़ुल्मात आवारा हवा

दिल के दरवाज़े से लग कर चुप खड़ा रहता है ग़म
किस से कहिए अपने जी की बात आवारा हवा

सर-कशी ज़िंदा रहे लेकिन 'मुजीबी' सोच ले
एक मुश्त-ए-ख़ाक की औक़ात आवारा हवा