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मैं बाम-ओ-दर पे जो अब साएँ साएँ लिखता हूँ | शाही शायरी
main baam-o-dar pe jo ab saen saen likhta hun

ग़ज़ल

मैं बाम-ओ-दर पे जो अब साएँ साएँ लिखता हूँ

तारिक़ जामी

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मैं बाम-ओ-दर पे जो अब साएँ साएँ लिखता हूँ
तमाम शहर की सड़कों की राएँ लिखता हूँ

तवील गलियों में ख़ामोशियाँ उगी हैं मगर
हर इक दरीचे पे जा कर सदाएँ लिखता हूँ

सफ़ेद धूप के तोदे ही जिन पे गिरते हैं
उन्हीं उदास घरों की कथाएँ लिखता हूँ

हवा के दोश पे रक़्साँ नहीफ़ पत्तों पर
बदलते मौसमों की इत्तिलाएँ लिखता हूँ

मैं झुंझलाहटों पर ज़ब्त कर नहीं सकता
सड़क पे चलते हुए दाएँ बाएँ लिखता हूँ

तिरे ख़ुलूस ने मुझ से वो दुश्मनी की है
तिरे लिए तो मैं अब बद-दुआएँ लिखता हूँ