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मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ | शाही शायरी
main aur bazm-e-mai se yun tishna-kaam aaun

ग़ज़ल

मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ

मिर्ज़ा ग़ालिब

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मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ
गर मैं ने की थी तौबा साक़ी को क्या हुआ था

thirsty from gathering of wine would I leave this way
if I had vowed to abstain where was the saaqii pray?

है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था

both of these lie pierced now, with merely one dart
those days are past when my heart and liver were apart

दरमांदगी में 'ग़ालिब' कुछ बन पड़े तो जानूँ
जब रिश्ता बे-गिरह था नाख़ुन गिरह-कुशा था

achievement would be if in sorrow's desperation be
when threads possessed no knots, my nails, possessed facility