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मैं अपने साथ कोई ऐसी चाल चल जाऊँ | शाही शायरी
main apne sath koi aisi chaal chal jaun

ग़ज़ल

मैं अपने साथ कोई ऐसी चाल चल जाऊँ

नदीम गोयाई

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मैं अपने साथ कोई ऐसी चाल चल जाऊँ
हर इक हिसार से बचता हुआ निकल जाऊँ

तमाम सम्त हवाओ बिखेर दो मुझ को
सिमटती रेत हूँ दीवार में न ढल जाऊँ

कुछ ऐसा लोच मिरे दरमियान पैदा कर
हर एक चोट पे इक गेंद सा उछल जाऊँ

किसी के जिस्म में पैवस्त हो न जाऊँ कहीं
मैं क्यूँ न काँच की सब किर्चियाँ निगल जाऊँ

तू अपना बोझ उठा मेरा ए'तिबार न कर
न जाने बर्फ़ की सतह से कब फिसल जाऊँ