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मैं अहल-ए-दहर की नज़रों में बे-अक़ीदा सही | शाही शायरी
main ahl-e-dahr ki nazron mein be-aqida sahi

ग़ज़ल

मैं अहल-ए-दहर की नज़रों में बे-अक़ीदा सही

सहबा अख़्तर

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मैं अहल-ए-दहर की नज़रों में बे-अक़ीदा सही
उलट नक़ाब कि नादीदा आज दीदा सही

हवा-ए-कूचा-ए-महबूब का हूँ दामन-गीर
हज़ार दामन-ए-महबूब ना-रसीदा सही

तसव्वुरात तिरे हुस्न से हैं वाबस्ता
तअ'ल्लुक़ात तिरी ज़ात से कशीदा सही

मिरी बुलंद ख़याली में क्या कमी आई
मैं अर्श-ज़ाद नहीं ख़ाक-ए-आफ़रीदा सही

मुझे नहीं न सही हो अदू को चैन नसीब
बशर का दुख है मुझे मैं बशर गज़ीदा सही

जिसे मिला है उसे मस्त कर गया 'सहबा'
मिरे ख़याल का बादा-सुख़न कशीदा सही