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मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ | शाही शायरी
main abhi se kis tarah un ko bewafa kahun

ग़ज़ल

मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ

नुशूर वाहिदी

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मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ
मंज़िलों की बात है रास्ते में क्या कहूँ

हुस्न-ए-बे-हिजाब पर कोई पर्दा डाल लो
तुम उसे सनम कहो मैं उसे ख़ुदा कहूँ

ऐ हरीस-ए-मय-कदा ख़ून-ए-ज़िंदगी न पी
तू शराब अगर पिए तुझ को पारसा कहूँ

गेसू-ए-सियाह की ये हसीं दराज़ियाँ
रात क्यूँ कहूँ उन्हें रात की दुआ कहूँ

तर्जुमान-ए-राज़ हूँ ये भी काम है मिरा
उस लब-ए-ख़मोश ने मुझ से जो कहा कहूँ

ग़ैर मेरा हाल-ए-ग़म पूछते रहे मगर
दोस्तों की बात है दुश्मनों से क्या कहूँ

इम्तिहान-ए-शौक़ है ऐसी आशिक़ी 'नुशूर'
दिल का कोई हाल हो उन को दिलरुबा कहूँ