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मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए | शाही शायरी
main aa raha tha sitaron pe panw dharte hue

ग़ज़ल

मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए

तारिक़ नईम

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मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
बदन उतार दिया ख़ाक से गुज़रते हुए

जमाल मुझ पे ये इक दिन में तो नहीं आया
हज़ार आईने टूटे मिरे सँवरते हुए

अजब नज़र से चराग़ों की सम्त देखा है
हवा ने ज़ीना-ए-पिंदार से उतरते हुए

इक-आध जाम तो पी ही लिया था हम ने भी
ख़ुमार-ए-ख़ाना-ए-दुनिया की सैर करते हुए

न जाने क्या दिल-ए-सय्याद में ख़याल आया
वो रो दिया था मिरे बाल-ओ-पर कतरते हुए

अब आसमान भी कम पड़ रहे हैं उस के लिए
क़दम ज़मीन पर रक्खा था जिस ने डरते हुए

वही सितारा सितारों का हुक्मराँ ठहरा
लरज़ रहा था जो पहली ज़क़ंद भरते हुए

वो आइना था मैं तारिक़-'नईम' टूट के भी
हज़ार अक्स बनाता गया बिखरते हुए