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मय मिले या न मिले रस्म निभा ली जाए | शाही शायरी
mai mile ya na mile rasm nibha li jae

ग़ज़ल

मय मिले या न मिले रस्म निभा ली जाए

राही शहाबी

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मय मिले या न मिले रस्म निभा ली जाए
ख़ाली बोतल है तो ख़ाली ही उछाली जाए

हम भी हैं सीना-सिपर आप भी शमशीर-ब-कफ़
बात तो जब है कोई वार न ख़ाली जाए

घर के आँगन में तअ'स्सुब की ये सड़ती हुई लाश
कितने दिन बीत गए अब तो उठा ली जाए

क्या तअ'ज्जुब है कि कुछ सोते हुए जाग उठें
सूनी बस्ती में इक आवाज़ लगा ली जाए

कल जो आएँ वो अँधेरों में न भटकें 'राही'
लाओ इक शम् सर-ए-राह जला ली जाए