मय-कशो जान के लाले नज़र आते हैं मुझे
ख़ाली ख़ाली से पियाले नज़र आते हैं मुझे
ज़ेहन इंसाँ ने तराशे हैं जो यज़्दाँ के ख़िलाफ़
सारे बे-जान हवाले नज़र आते हैं मुझे
वक़्त-ए-रफ़्तार छलकते हुए ये रूप-कलस
चलते फिरते से शिवाले नज़र आते हैं मुझे
है हवासों पे शब-ए-हिज्र का इस दर्जा असर
सुब्ह के रंग भी काले नज़र आते हैं मुझे
तेरे अशआ'र भी शादाब बुतों के मानिंद
नाज़-ओ-अंदाज़ के पाले नज़र आते हैं मुझे
ग़ज़ल
मय-कशो जान के लाले नज़र आते हैं मुझे
अक़ील शादाब