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मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी | शाही शायरी
mai-kashi gardish-e-ayyam se aage na baDhi

ग़ज़ल

मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी

हकीम नासिर

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मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
मेरी मदहोशी मिरे जाम से आगे न बढ़ी

दिल की हसरत दिल-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी
ज़िंदगी मौत के पैग़ाम से आगे न बढ़ी

वो गए घर के चराग़ों को बुझा कर मेरे
फिर मुलाक़ात मिरी शाम से आगे न बढ़ी

रह गई घुट के तमन्ना यूँही दिल में ऐ दोस्त
गुफ़्तुगू अपनी तिरे नाम से आगे न बढ़ी

वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे 'नासिर'
ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढ़ी