मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
मेरी मदहोशी मिरे जाम से आगे न बढ़ी
दिल की हसरत दिल-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी
ज़िंदगी मौत के पैग़ाम से आगे न बढ़ी
वो गए घर के चराग़ों को बुझा कर मेरे
फिर मुलाक़ात मिरी शाम से आगे न बढ़ी
रह गई घुट के तमन्ना यूँही दिल में ऐ दोस्त
गुफ़्तुगू अपनी तिरे नाम से आगे न बढ़ी
वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे 'नासिर'
ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढ़ी
ग़ज़ल
मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
हकीम नासिर