महव-ए-रुख़-ए-यार हो गए हम
सो जी से निसार हो गए हम
फ़ितराक से बाँध ख़्वाह मत बाँध
अब तेरे शिकार हो गए हम
दामन को न पहुँचे तेरे अब तक
हर चंद ग़ुबार हो गए हम
आता नहीं कोई अब नज़र में
किस से ये दो-चार हो गए हम
था कौन कि देखते ही जिस के
यूँ आशिक़-ए-ज़ार हो गए हम
हस्ती ही हिजाब थी जो देखा
इस बहर से पार हो गए हम
'बेदार' सरिश्क-ए-लाला-गूँ से
हम-चश्म-ए-बहार हो गए हम
ग़ज़ल
महव-ए-रुख़-ए-यार हो गए हम
मीर मोहम्मदी बेदार